अनुभूति में रामशंकर
वर्मा की रचनाएँ-
नए गीतों में-
अरी व्यस्तता
फागुन को भंग
बाहर आओ
बूँदों के मनके
साहब तो साहब होता है
गीतों में-
एक कविता उसके नाम
तुम बिन
यह अमृतजल है
सखि रंग प्रीत के डाल
साथी कभी उदास न होना
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फागुन को भंग
चढ़ी फागुन को
नौ लोटा भंग रे।
फिरे गलियों में करता
हुड़दंग रे।
माथे पर टेसू का
केसरिया साफा
हल्दी की छाप लगा
हाथ में लिफाफा
सप्तपदी
बाँचे उमंग रे।
नेह लगे बटनों का
पहने सलूका
सबरंग गुलाल मले
चेहरा भभूका
मन मथुरा
तन है मलंग रे।
कौली के बंधन से
कोई न छूटे।
आज कोई अपना
पराया न रूठे।
गाये हुरियारों
के संग रे।
२१ अप्रैल २०१४
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