अनुभूति में रामशंकर
वर्मा की रचनाएँ-
नए गीतों में-
अरी व्यस्तता
फागुन को भंग
बाहर आओ
बूँदों के मनके
साहब तो साहब होता है
गीतों में-
एक कविता उसके नाम
तुम बिन
यह अमृतजल है
सखि रंग प्रीत के डाल
साथी कभी उदास न होना
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अरी व्यस्तता
अरी ओ व्यस्तता!
कब पिंड छोड़ेगी बता।
मन सरोवर में
कोई हलचल मचाने
फेंकता ज्यों ही
विचारों का कोई कंकड़
तू हवा में गोंच लेती।
भावनाओं के शिथिल
रंगीन गुब्बारे
फूलकर आकर लें
इससे प्रथम तू
विघ्न काँटा कोंच देती।
धूर्त कुटनी सी
नये नित जाल बुनकर
क्यों रही मुझको सता।
ताख पर रक्खे
सनातन मूल्य
करुणा पुस्तकों में
दिनदहाड़े नंगई
बेख़ौफ़ हो पिकनिक मनाती
रक्तरंजित
मनुजता के घाव आहें
टिमटिमातीं।
जल रही शुचि नेह की
अनुबंध बाती।
यवनिका के
पतन से पहले
समय का यह कथानक
लेखनी लिख भी सकेगी
क्या पता।
२१ अप्रैल २०१४
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