अनुभूति में रामशंकर
वर्मा की रचनाएँ-
नए गीतों में-
अरी व्यस्तता
फागुन को भंग
बाहर आओ
बूँदों के मनके
साहब तो साहब होता है
गीतों में-
एक कविता उसके नाम
तुम बिन
यह अमृतजल है
सखि रंग प्रीत के डाल
साथी कभी उदास न होना
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यह अमृत जल है
निरा नीर ही नहीं बन्धु यह अमृत जल है
जीवन की रग रग में बहता
जड़ चेतन का बल है
जल संसृति का इक आलंबन
और प्रकृति का जीवन धन है
सर-सरिता का अल्हड यौवन
इसके बिना मृतक उपवन है
वारि विहीन मही कहलाती
बन्ध्या मरुस्थल है
जल पनघट की हँसी-ठिठोली
तीर्थों का संध्या वंदन है
जल संस्कृतियों का सम्वाहक
और ह्रदय का स्पन्दन है
जल की एक बूँद का प्यासा
चातक फिरे विकल है
हमने वन-वाटिका उजाड़े
मेघ किये निर्जल हैं
सरिता वापी-कूप निचोड़े
रिक्त किये भूजल हैं
आज नही तो कल निश्चित ही
इसका मिले कुफल है
आओ! करें हम जल संरक्षण
व्यर्थ एक न बूँद बहाएँ
आओ! करें जल, रहित प्रदूषण
सच्चे मातृभक्त कहलायें
अक्षुण रहे जलद की रिमझिम
झरनों की कल-कल है
२५ जून २०१२ |