अनुभूति में अश्विनी
कुमार विष्णु
की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
ऊँचाई
घर
जलस्तर
थकन
वन देवता
हाइकु में-
बारह हाइकु मौसम के नाम
गीतों में-
चंदा मामा
रहो न अब यों
चलना पथ पाना है
तटबन्धों-का टूटना
मन की पहरेदारी में
मेघ से कह दो
अंजुमन में-
टूटे-फूटे घर में
फ़ुर्सत मिले तो
बिना मौसम
शहर में
संकलन में-
नयनन में नंदलाल-
प्रभुकुंज बिहारी
नया साल-
नया क्या साल में है
ममतामयी-
जय अम्बिके
विजयपर्वी-
आशाएँ फलने को विजयपर्व कहता चल
पिंजरे का तोता
होली है-
फागुन की पहली पगचाप
हरसिंगार-
मन हरसिंगार
|
|
वनदेवता
उन्होंने अभयारण्य बनाए
बकरे को शेर बनाने का तरीका
न जानते थे, न आया, न ही सीख पाए
शेर के लिए ज़रूर तय कर दिया
कि वह बकरे-सा जीवन बिताए
कहने को उसके लिए
हिरन और खरगोश भी उगाए
हर जतन के बाद भी
जैसे चाहिए थे परिणाम न मिल पाए
उन्हीं के पास अब
वन और वनवासी के लिए
योजनाएँ ही योजनाएँ हैं
वनों को खदानों में
ज़मीन को तहख़ानों में
तब्दील करने वाले
विकास की रेखाएँ
चीन्ह चुके हैं वे
चप्पे-चप्पे पर
उनकी चौकस आँखें
छोड़ नहीं रहीं हैं
सेंधमारी का
ज़रा-सा भी मौक़ा
शरण तिहारी, त्राहि माम्, वनदेवता!
२० जुलाई २०१५
|