अनुभूति में अश्विनी
कुमार विष्णु
की रचनाएँ—
छंदमुक्त
में-
ऊँचाई
घर
जलस्तर
थकन
वन देवता
हाइकु में-
बारह हाइकु मौसम के नाम
गीतों में-
चंदा मामा
रहो न अब यों
चलना पथ पाना है
तटबन्धों-का टूटना
मन की पहरेदारी में
मेघ से कह दो
अंजुमन में-
टूटे-फूटे घर में
फ़ुर्सत मिले तो
बिना मौसम
शहर में
संकलन में-
नयनन में नंदलाल-
प्रभुकुंज बिहारी
नया साल-
नया क्या साल में है
ममतामयी-
जय अम्बिके
विजयपर्वी-
आशाएँ फलने को विजयपर्व कहता चल
पिंजरे का तोता
होली है-
फागुन की पहली पगचाप
हरसिंगार-
मन हरसिंगार
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जल-स्तर
वह जो महिला बैठती है न
इस टेबल पर
एक नदी रोज़ाना पल्लू में बाँध लाती है
कड़वे घूँटों-की कई सौ नदियाँ
इन फ़ाइलों में अटी पड़ी हैं
जिनके पन्ने उलट-पलटती रहती है वह दिन भर
और वे बहने लगती हैं
धाराओं के चलन को
उससे बेहतर कौन समझ सकता है भला
उद्दाम प्रवाह की शक्ति को भी
तरह-तरह के मसलों की
कुचैली फ़ाइलों को
किसी दिन बहा न दे वह कहीं बाढ़ में
मुस्कुराती भी है
झुँझलाती भी है
गम्भीर भी हो जाती है
उदास भी
और
ख़तरे के निशान को पार कर जाता है
उसकी आँखों-का जल-स्तर
लट्टू हो कोई मर्द उस पर
वह चाहती है कि नहीं वही जाने
हाँ, चुल्लू-भर पानी ज़रूर होता है उसके पास
बहुतों के लिए
२० जुलाई २०१५
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