अनुभूति में अश्विनी
कुमार विष्णु
की रचनाएँ—
गीतों में-
चंदा मामा
रहो न अब यों
चलना पथ पाना है
तटबन्धों-का टूटना
मन की पहरेदारी में
मेघ से कह दो
अंजुमन में-
टूटे-फूटे घर में
फ़ुर्सत मिले तो
बिना मौसम
शहर में
संकलन में-
नयनन में नंदलाल-
प्रभुकुंज बिहारी
नया साल-
नया क्या साल में है
ममतामयी-
जय अम्बिके
विजयपर्वी-
आशाएँ फलने को विजयपर्व कहता चल
पिंजरे का तोता
होली है- फागुन की पहली पगचाप
हरसिंगार-
मन हरसिंगार
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टूटे
फूटे घर में
टूटे-फूटे घर में सबसे बेघर टूटी-टूटी माँ
माने तो किस-किससे माने सबसे रूठी-रूठी माँ !
दादी नानी मामी मौसी रिश्ते-नातों का बाग़ान
ख़ाबिंद की नज़रों में है तो है बस जूती-जूती माँ !
जब देखो तब कहता रहता है सारा कुनबा विषबेल
अब तक तो सबकी ख़ातिर थी घूटी बूटी-बूटी माँ !
कम ही देखे कम ही सुनती कम ही बोले-बतियाए
सच्चे-सच्चे दुख की ठुकराई-सी झूठी-झूठी माँ !
चेहरे की झुरियों में चुप छुप रो-रोकर हँस पड़ती है
अक्सर ख़्वाबों-अरमानों की मारी लूटी-लूटी माँ !
क्या जाने किस जुग आएगा इसके हिस्से बूरा-भात
अब तक तो बस रही तिव्हार-व्रतों की जूठी-जूठी माँ !
२१ नवंबर २०११
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