अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

जय अम्बिके

 

 

 

जय अम्बिके जगदम्बिके
तुमको नमन
शत-शत नमन

हे सर्वमंगलकारिणी
पल-पल तुम्हारा ध्यान हो
कल्याणदायक सिद्धि का
संकल्प दो
वरदान दो
निष्फल रहें बाधाओं के
छल-पेंच सब सारे जतन

जय अम्बिके जगदम्बिके
तुमको नमन
शत-शत नमन

रचते रहें षडयंत्र जो
कपटी-कुटिल खल हैं जहाँ-
यश पाएँ सब सत्कर्म-
होवें दर्प
उनके चूर माँ
आशीष दो हमको सदा
भाए तुम्हारा ही भजन

जय अम्बिके जगदम्बिके
तुमको नमन
शत-शत नमन

पावन रहें मन-वचन से
शुचिता भरा व्यवहार हो
नव-कंज सा नव कुंद-सा
खिलता हुआ
संसार हो
कात्यायनी रुद्रायणी
पूरन करो मन की लगन !

जय अम्बिके जगदम्बिके
तुमको नमन
शत-शत नमन

-अश्विनी कुमार विष्णु
३० सितंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter