अनुभूति में अश्विनी
कुमार विष्णु
की रचनाएँ—
गीतों में-
चंदा मामा
रहो न अब यों
चलना पथ पाना है
तटबन्धों-का टूटना
मन की पहरेदारी में
मेघ से कह दो
अंजुमन में-
टूटे-फूटे घर में
फ़ुर्सत मिले तो
बिना मौसम
शहर में
संकलन में-
नयनन में नंदलाल-
प्रभुकुंज बिहारी
ममतामयी-
जय अम्बिके
विजयपर्वी-
आशाएँ फलने को विजयपर्व कहता चल
पिंजरे का तोता
होली है- फागुन की पहली पगचाप
हरसिंगार-
मन हरसिंगार
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चलना पथ
पाना है
राहों में उलझा तो
मंज़िल क्या पाएगा
भटका मुसाफिर! तो भटका रह जाएगा
थमना पथ-बाधा है
चलना पथ पाना है
अपने संकल्पों-का क्षितिज सामने रखना
संकट में भी आसाँ विकल्पों में न फँसना
बाड़ काँटेदार रहे बिन सोचे धँस लेना
हर खरौंच जब टपके मत रोना हँस लेना
लोगों-की कम सुनना
तू तो दीवाना है
गाड़ने चले हैं जो झंडे नक्षत्रों पर
वे ही तो बरसाते नित कहर निःशस्त्रों पर
अपने ही मद में जो चूर रहा करते हैं
स्वयं-को वही कायर शूर कहा करते हैं
वीर वह, बचा लेता
जो हरेक ठिकाना है
इन सब संघर्षों-का इतिहास बन जा तू
मृतप्राय रीतों-का उपहास बन जा तू
आने वाले पल-का विश्वास बन जा तू
आज का नहीं कल का उल्लास बन जा तू
तू लक्ष्यबेधी है
सबको दिखाना है !
२१ अक्तूबर २०१३
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