अनुभूति में अश्विनी
कुमार विष्णु
की रचनाएँ—
गीतों में-
चंदा मामा
रहो न अब यों
चलना पथ पाना है
तटबन्धों-का टूटना
मन की पहरेदारी में
मेघ से कह दो
अंजुमन में-
टूटे-फूटे घर में
फ़ुर्सत मिले तो
बिना मौसम
शहर में
संकलन में-
नयनन में नंदलाल-
प्रभुकुंज बिहारी
नया साल-
नया क्या साल में है
ममतामयी-
जय अम्बिके
विजयपर्वी-
आशाएँ फलने को विजयपर्व कहता चल
पिंजरे का तोता
होली है- फागुन की पहली पगचाप
हरसिंगार-
मन हरसिंगार
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चंदा मामा
रहो न अब यों
चंदा मामा
रहो न अब यों
रहो न अब यों दूर के
मेरी प्याली में रख जाओ
पुए पकाकर बूर के !
बिथा बड़ी है
खड़े खेत में गेहूँ घुन जाते
फ़सलों वाले वार-महीने चुर्रा बन जाते
बित्ते-भर के पीछे फटको बीघा-भरी पटास
दवा-खाद से उपजें भी तो धानों नहीं मिठास
रस भी कहाँ चाख पाता हूँ
पूरा गन्ना चूर के !
चंदा मामा रहो न अब यों
रहो न अब यों दूर के
मेरी प्याली में रख जाओ
पुए पकाकर बूर के !
दो रोटी मिल-बाँट
जीम लें मुन्ना और मुन्नी
लट्टू मिल जाए गुड्डे को गुड़िया को चुन्नी
क्या बतलाऊँ सब कुछ कितना बोझल लगता है
छप्पर से छुटकारा पा लूँ पल-पल लगता है
मेरे सपने कभी नहीं है किसी
सुरग या हूर के !
चंदा मामा रहो न अब यों
रहो न अब यों दूर के
मेरी प्याली में रख जाओ
पुए पकाकर बूर के !
२१ अक्तूबर २०१३
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