अनुभूति में
डॉ. सुषम
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कलियुग की दोस्तियाँ
घर- दो कविताएँ
जंगल- दो कविताएँ
बसंत के खेल
फूलों का राज्य
कविताओं में -
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का अंधेरा
ऋषिकेश
औरत
घर और
बग़ीचा
पीढ़ियाँ
माँ की गंध
सूत्र
हिमपात
हुजूम
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास-
हवाई
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ऋषिकेश
मेरी धरती पर
जो भी श्रेष्ठ था
सुंदरम, हरीतिम और सुकुमार था
कर्ज़ है उस पर
आश्रमों का
बिजली नायलान और प्लास्टिक से आभूषित
मंदिरों का
कानों को बेधते
नसों में तड़कते, आँखों को छीलते
पत्थर बरसाते
नूतन
धमाधम संगीत का
मेरा आराध्य खोजता है आश्रय
स्वेच्छा शांति से मंडित
एकाग्र एकांत
बारिश से धुली अनछुई हरियाली
निडर कुलांचता
चहकता
महकता
जीव जगत!
मेरी प्रार्थना चुप है
मेरी भावना संत्रस्त
मैं आराधना कहाँ करूँ? |