अनुभूति में
डॉ. सुषम
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कलियुग की दोस्तियाँ
घर- दो कविताएँ
जंगल- दो कविताएँ
बसंत के खेल
फूलों का राज्य
कविताओं में -
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का अंधेरा
ऋषिकेश
औरत
घर और
बग़ीचा
पीढ़ियाँ
माँ की गंध
सूत्र
हिमपात
हुजूम
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास-
हवाई
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औरत
ये पीढ़ियों की सीढ़ियाँ है
उन पर चलूँगी मैं
चली थी
चल रही हूँ आज भी
मेरा एक छोर इतिहास है
दूसरा विकास
आकाश तक तनी हुई
धरती को रौंदती हुई
मैं जी रही हूँ, जी रहूँगी
काल में और स्थान में
मुझको क्यों डर विनाश का
इतिहास का या ह्रास का
मैं हूँ अनश्वर अंतहीन
ज़िन्दा और वर्तमान हूँ
हर पीढ़ी में,
निर्माण में
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