अनुभूति में
डॉ. सुषम
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फूलों का
राज्य
ओ चेरी फूल!
कल ही तो तुमने मेरा द्वार
खटखटाया था
बड़े गर्व से छाती तान कहा था
मैं आ गया हूँ
मुझे तो मालूम था कि तुम
आओगे
मुल्क भर में ढिंढोरा जो पिट
रहा था।
पर यह क्या?
आज तुमसे मिलने गई
तो तुम नदारद थे
नामोनिशान तक नहीं
जैसे कभी आए ही न हो!
इतनी जल्दी हार मान गए
हरीतिमा से?
हाँ उसका तो साम्राज्य फैल ही
रहा है
जहाँ जाओ
बस वही एक!
ओ चेरीफूल
इतनी जल्दी हार मत मानो
लड़ो
उसकी साम्राज्यवादिता से
चुनौती दो
जहाँ कहीं दाव लगे, डट जाओ!
गुरिल्ला युद्ध करो
आतंक मचाओ।
कितनी भी सीमित हो तुम्हारी
दुनिया
या तुम्हारी ताक़त
एक न एक दिन तुम्हें जीतना
ही है
अपना गुलाबी झंडा फहराना ही है।
५ मई २००८
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