अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ. सुषम बेदी की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
अस्पताल का कमरा
उम्र के मानदंड
कलियुग की दोस्तियाँ
घर- दो कविताएँ
जंगल- दो कविताएँ
बसंत के खेल
फूलों का राज्य
 

कविताओं में -  
अतीत का अंधेरा
ऋषिकेश
औरत
घर और बग़ीचा
पीढ़िया
माँ की गंध
सूत्र
हिमपात
हुजूम

संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास-
हवाई

  माँ की गंध

मैं उलझी हूँ एक वाक्य से
जो मेरे सपने में था

परिवार लड़कियाँ
बहनें भाभियाँ सहेलियाँ मौसियाँ
बेटियाँ, दूतियाँ
रौनक भरा सपना
एक सपनों भरा सपना

बस एक ही वाक्य से स्पंदित था मेरा सपना
एक ही वाक्य में पिरोये थे
मोती, कलियाँ, फूल, कंटक
किलकारियाँ, अठखेलियाँ, आँसू
गर्वोन्नत स्नत, सर्जक यंत्रणामय गर्भाशय
सद्यभू मातृत्व की चीखें

मैं सुन कह रही थी एक ही वाक्य
आज आन बसी है माँ की गंध मुझमें।

यह नहीं माँ की गंध जो हवा में बसी है
या पानी में या फूल में
ये तो निकसती है अंदरी गुफ़ा से
तैरती है अंदरी गुफ़ा तक
रम जाती है वहीं कहीं गुफ़ा में
न दीखती है न सुँघती है
किसी रहस्य की कुंजी की तरह
पड़ी रहती है अपनी गुफ़ा में
जब कोई जादूगर बताता है कुंजी का पता
तभी खोज होती है
गंध की

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter