अनुभूति में
डा. सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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व्यतीत
पकड़ कर हाथ तुम मेरा चलना सीखे
छिले घुटनों की दाह पर मेरे आँसुओं की
मरहम लगी
ठुनक-ठुनक तुम्हारे पहले-नर्तन पर
नाची थी मेरी ममता -
आकाश और धरती से अलग हो गया था
मेरा वजूद
बड़ा ही- विशिष्ट निराला-
एक सर्जक की गरिमा से भर दिया था
तुम्हारे शिशुत्व ने।
व्यतीत हुआ अतीत
पर आज मुझ पर उतर आया है शैशव-
जो चल रहा है घुटनों के बल
छिलता छितराता अकेला!
१५ मार्च २०१७
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