अनुभूति में
डा. सुदर्शन प्रियदर्शिनी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अनन्त
अहंकार
चाँद
जनम जनम
देहरी
धीरे धीरे
भटकन
भय
छंदमुक्त में -
दो होली कविताएँ
गिलहरी
ज़हर
द्वंद्व
निचोड़
सल्तनत
|
|
अहंकार
चौकड़ी
मार कर
बैठा रहता है
मेरे ऊपर
मेरा अहंकार
चमगादड़-सा
लिपट जाता है
ज्यों-त्यों हर बार
कुछ
न होने
पर ही
चढ़ता है यह
नशा
खाली चना बाजे घना
का अवतार
कैसे उतारू या हटकूँ
इसे बार-बार
काश!
मार सकती मैं
इसे दुल्लती
फिर दुत्कारती इसे
यह घायल कुत्ते-सा
रिरियाता चूँ-चूँ करता
घुस जाता किसी और घर
छोड़ कर मेरा मन द्वार।
२९
मार्च
२०१० |