अनुभूति में
डा. सुदर्शन प्रियदर्शिनी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अनन्त
अहंकार
चाँद
जनम जनम
देहरी
धीरे धीरे
भटकन
भय
छंदमुक्त में -
दो होली कविताएँ
गिलहरी
ज़हर
द्वंद्व
निचोड़
सल्तनत
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जनम-जनम
सदियों से
हम रहते आए हैं।
किसी न किसी में।
सूरत बन कर
या सीरत बन कर...
बाप का बेटा
बेटे का बेटा
और भी
हमारी चाहना
बढ़ती जाती है...
जीने की...
इच्छा मरती नहीं
आजन्म
फिर मोक्ष का
प्रश्न कैसा।
२९
मार्च
२०१० |