अनुभूति में
डा. सुदर्शन प्रियदर्शिनी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अनन्त
अहंकार
चाँद
जनम जनम
देहरी
धीरे धीरे
भटकन
भय
छंदमुक्त में -
दो होली कविताएँ
गिलहरी
ज़हर
द्वंद्व
निचोड़
सल्तनत
|
|
गिलहरी
लटकी हुई हैं
बर्फ़ सी गिलहरियाँ
मेरे वजूद की
यहाँ।
डरी-डरी
सहमी सी
थामे टहनियाँ।
उल्टी लटकी हुई फाँस
एक दिन
काल बन जाएगी।
१६ दिसंबर २००५
|