अनुभूति में
डा. सुदर्शन प्रियदर्शिनी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अनन्त
अहंकार
चाँद
जनम जनम
देहरी
धीरे धीरे
भटकन
भय
छंदमुक्त में -
दो होली कविताएँ
गिलहरी
ज़हर
द्वंद्व
निचोड़
सल्तनत
|
|
भटकन
इतना
मायावी तांत्रिक जाल
इतना भक भक उजाला
इतना भास्कर देय तेज
इतनी भयावह
हरियाली
इतना ताम झाम
इतने मुँह बाये
खडे सगे संबधी
पहले से ही
तय रास्ते
पगडडियाँ
और छोड देता है
वह नियन्ता
हमें सूरदास
की तरह
राह टटोलने।
२९
मार्च
२०१० |