अनुभूति में
डा. सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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साख
क्यों टूट जाते हैं किनारे अपने-आप !
क्यों रिसती रहती है धीमे-धीमे जमीन!
क्यों बन जाती है लहरें बहुत बड़ा बवण्डर
कि बाँधे-नही बँधते बाँध !
टूट जाते हैं अटूट-अचल -खड़े किनारे
बँधे-बँधाये सेतु
और घर-दीवार को जोड़ने वाली-साख !
१५ मार्च २०१७
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