अनुभूति में
डा. सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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बंजर
कैक्टस के तीखे कीड़ों सी चुभती-गहरी
चीरती-अनचाही -खुदी लकीरों सी
झुर्रियों को देख कर
कलेजा मुंह को आता है
काश !
कोई हाथों में हाथ भर कर कुछ कहता
कैसे छाया यह अचानक कसमसाता पतझड़
कि-हम कुछ न कर सके .!
कैसे निकलेगी आखिरी साँस
कौन उठायेगा-अर्थी
कौन पहले पहुँचेगा !
किस का क्या था कर्त्तव्य
सब की आँखों में उतरेगा-प्रश्न
चार -दीवारी के अंदर खुलने की चाबी नही
पुलिस या एम्बुलेंस
जोर-जबरदस्ती की टँकार होगी -वह सुनेगी
तड़पेगी -
साँस को रोकने की कोशिश करेगी
लेकिन जब तक दरवाजा टूटेगा
सब-खत्म होगा ...
१५ मार्च २०१७
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