अनुभूति में
डा. सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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सपने
कितने बड़े होते हैं-सपने
और कितनी
बौनी-विवशताएँ .
सपने गीले-कपड़ो से
अलमारी में टँगे-टँगे अपनी ही सीलन में
उनींदे-उनींदे दम-तोड़ देतें हैं।
छोटी-छोटी विवशताएँ
विषैले -झबरैले साँप बन कर
डस जाती हैं सपने ....
चुपचाप ।
१५ मार्च २०१७
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