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बसंत
बसंत चली आई,
अधमुँदीं पलकों में,
कुछ तस्वीरों को ले कर।
एक कोलाज उभर कर आया है,
कुछ कच्ची कलियाँ हैं शाखों पर,
हरी दूब और उसके बीच में हैं कुछ डैफोडिल,
ठंडी हवा के झोंके में सिहर रहे हैं
नन्हीं चिड़िया के पंख।
पीले पराग को हाथों में
लिए मैं रंग रही थी
भोर के प्रतीक्षित क्षणों को,
और तुम,
मेरे उन्हीं क्षणों से
सूर्य को अर्घ्य दे रहे थे,
मेरे बसंत को आँखों में समेटे हुए
खिलते फूलों का प्रसंग दे रहे थे।
२४ सितंबर २००७
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