बसंत ने दस्तक दी
फूटी कोपलें अंगनाई
नुक्कड़ पर खड़ी हुई
बसंती बयार मुस्काई।पलकों पर मंजरी
ख़्वाब बुन सकुचाई
नींद के पहरे अडिग
रात रही भरमाई।
तुम्हारी हथेली में
अंकुरित बासंती सपने
मेरी हथेली में उगते
रहे रतनारे सपने।
बसंती फुहार की नमी
सतह को छू गई गहरी
बहकी-सी बौराई-सी
पीली हुई फ़रवरी।
९ फरवरी २००९ |