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नव वर्ष अभिनंदन

नव वर्ष के कोरे पन्नों पर

         

जब राह के पंछी घर को लौटें
जब पेड़ के पत्ते झर-झर जाएँ
जब आकाश ठंड का कोहरा ओढ़े
आँखों के पानी से लिखी पाती मिल जाए
एक उजले स्वप्न-सा आँखों में भर लेना
आँखों की नमी से मुझको भिगो देना।
नव वर्ष के कोरे पन्नों पर भेज रही हूँ गुहार

जब फसल कटने के दिन आएँ
धान के ढेर लगे हों घर द्वार
लोढ़ी संक्राति और पोंगल लाए पके धान की बयार
बसंत झाँके नुक्कड़ से बार-बार
तुम सुस्ताने पीपल के नीचे आ जाना
मेरी गोद में अपनी साँसों को भर जाना।
नव वर्ष के कोरे पन्नों पर भेज रही हूँ गुहार

ज़ब भी भीड़ में चलते-चलते कोई पुकारे मुझे
और मैं पीछे मुड़ कर देखूँ
तुम मेरे कंधे पर हाथ रखकर
क़ानों में चुपके से कुछ कह कर
थोड़ी देर के लिए अपना साथ दे जाना
भीड़ के एकाकीपन में अपना परिचय दे जाना।
नव वर्ष के कोरे पन्नों पर भेज रही हूँ गुहार

रजनी भार्गव
1 जनवरी 2007

 

क्रिसमस

छुटि्टयों का मौसम है
त्योहार की तैयारी है
रौशन हैं इमारतें
जैसे जन्नत पधारी है

कड़ाके की ठंड है
और बादल भी भारी है
बावजूद इसके लोगों में जोश है
और बच्चे मार रहे किलकारी हैं
यहाँ तक कि पतझड़ की पत्तियाँ भी
लग रही सबको प्यारी हैं
दे रहे हैं वो भी दान
जो धन के पुजारी हैं।

खुश हैं ख़रीदार
और व्यस्त व्यापारी हैं
खुशहाल हैं दोनों
जबकि दोनों ही उधारी हैं

भूल गई यीशु का जनम
ये दुनिया संसारी है
भाग रही है उसके पीछे
जिसे हो हो हो की बीमारी है

लाल सूट और सफ़ेद दाढ़ी
क्या शान से सँवारी है
मिलता है वो मॉल में
पक्का बाज़ारी है

बच्चे हैं उसके दीवाने
जैसे जादू की पिटारी है
झूम रहे हैं जम्हूरे वैसे
जैसे झूमता मदारी हैं

राहुल उपाध्याय

 

 

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