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प्रेम
में
रहना चाहता हूँ, मैं प्रेम में
पहले कौर के स्वाद के जैसे
धीमे-धीमे घुलता हुआ
उतरता हुआ
भूख के मरुथल में
संतोष के गहरे आस्वाद के साथ
रहना चाहता हूँ
पुष्पित प्रथम पुष्प की तरह
जो आता है
किसी बच्चे के द्वारा
लगाए पौधे में, ढेर सारी मुस्कान
और सृजन के
प्रथम अनुभव के साथ
रहना चाहता हूँ
उस पहली बोली की तरह
जब बच्चा पहली बार बोलता है “माँ”
और माँ पा लेती है
प्रकृति की तरह पूर्णता का सुख
बहुत कुछ होने की चाह नहीं
अभिलाषा पाने की नहीं
भय खोने का नहीं
मैं रहना चाहता हूँ
बस प्रेम में
किसी पेड़ की तरह
जिसके नीचे मिला करते हैं दो युवा प्रेमी
खोलते हुए हृदय गवाक्ष
१ जुलाई २०२३ |