अनुभूति में
नीरज
कुमार नीर की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
औरत और नदी
दीया और चाँद
न जाने कब चाँद निकलेगा
स्मृति
हर्ष और विषाद
छंदमुक्त में-
अवतार अब जरूरी है
उड़ो तुम
काला रंग
जन गण मन के अधिनायक
जहरीली शराब
परंपरा
सपने और रोटियाँ
सुख का सूरज
सुखद स्मृतियाँ |
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परंपरा
मोटी जड़ वाला
बरगद का घना पेड़
बचाता रहा
धूप और पानी से
जेठ की तपती दुपहरी
में भी
भर देता
शीतलता भीतर तक
निश्चिन्तता के साथ आती खूब गहरी नींद
बरगद से निकल आईं
अनेक जड़ें
थाम लेती हैं
फैलाकर बाहें
हर मुसीबत में, और देतीं उबार
बरगद को चढ़ाते हैं लाल सिंदूर
और बाँधते हैं धागे एकता के
बरगद के साथ
अपनी एकात्मता जताने के लिए
लेकिन अब बरगद की जड़ें काटी जा रही हैं
बरगद की जगह लगा रहे हैं
बोगन वेलिया के फूल
३ नवंबर २०१४ |