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दीया और चाँद

कल रात चाँद मेरे घर आया
हुई दरवाजे पे दस्तक
खिडकी पे नज़र आया
नज़रें मिलीं मुझसे
थोडा शरमाया, कहा मुझसे
मुझे अपने घर में जगह दे दो
मुझे अपनी सी जीने की वजह दे दो
मैं चाँद हूँ, जिंदगी रौशनी से भर दूँगा
जितना चाहोगे उससे बेहतर दूँगा
मैंने कहा मुझे और की फरमाइश नहीं
जो है मेरे पास बहुत है
मुझे और की ख्वाहिश नहीं
एक दिया है काफी जिंदगी में रोशनी के लिए
आँसू भी है जरूरी आँखों में नमी के लिए
मेरी कोशिश है जीवन यूँ ही चलता रहे
तूफानों झंझावातों में दिया जलता रहे। 

१३ अप्रैल २०१५

 

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