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सुखद स्मृतियाँ
दुमहले के ऊँचे वातायन से
हलके पदचापों सहित
चुपके से होती प्रविष्ट
मखमली अंगों में समेट
कर देती निहाल।
स्वयं में समाकर एकाकार कर लेती,
घुल जाता मेरा अस्तित्व
पानी में रंग की तरह.
अम्बर के अलगनी पर
टाँग दिए हैं वक्त ने काले मेघ,
चन्द्रमा आवृत है, ज्योत्सना बाधित,
अस्निग्ध हाड़ जल रहा
सीली लकड़ियों की तरह.
स्मृति मञ्जूषा में तह कर रखी हुई हैं
सुखद स्मृतियाँ।
२१ अप्रैल २०१४ |