अनुभूति में
नीरज
कुमार नीर की रचनाएँ-
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स्मृति
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काला रंग
जन गण मन के अधिनायक
जहरीली शराब
परंपरा
सपने और रोटियाँ
सुख का सूरज
सुखद स्मृतियाँ |
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अवतार अब जरूरी है
जब जीना मरने से मुश्किल लगे
अवनत स्वाभिमान प्रतिपल लगे
जब आगे बढ़ने की कोई चाह नहीं
व्यूह से बाहर की कोई राह नहीं
जब कोई बोले मीठे बोल नहीं
शोणित का जब कोई मोल नहीं
जब लहू का स्वाद मीठा लगे
अपनों का विश्वास झूठा लगे
विजय पताका वाले हाथों में
जब भीख का कटोरा हो
राजमहल के कंगूरों पर
चढ़कर जब कोई रोता हो
जब काबिल के घर फाका हो
जब मेधा पर पड़ता डाका हो
जब शांति हो नगर में
श्मशानों में हो कोलाहल
सीधे साधे प्रश्नों का
जब मुश्किल होता हो हल
ऐसे ही अवसानो में
जब तूती बजती नक्कारखानों में
थाम काल का चक्र घुमाता है
आता है जग को नयी दिशा दिखाता है
ढोता है कन्धों पर परिवर्तन का जुआ
ऐसा ही युग पुरुष अवतार कहलाता है
अवतार होते नहीं अवतरित
अवतरित होते हैं उनमें गुण
गुण जो होते है महामानवीय
जो प्राप्य हैं त्याग और तपस्या के बल पर
गुण जो बनाते हैं किसी को
राम और कृष्ण, देते हैं नाम
किसी को बुद्ध का
मेरे मन में है एक यक्ष प्रश्न
क्या वक्त नहीं आया
एक अवतार का?
३ नवंबर २०१४ |