अनुभूति में
डॉ.
मधु प्रधान की रचनाएँ-
दोहों में-
अन्तर में मीरा बसी
नई रचनाओं में-
इतनी पीड़ा
गीत गाने के लिये भी
चंदन हम तो बन जाएँगे
लौटा दो मेरे गाँव गली
गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में
प्रीत की पाँखुरी
प्यासी हिरनी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुमन जो मन
में बसाए
सुलग रही फूलों की घाटी
अंजुमन में-
चुपके चुपके
जिंदगी मीठी गजल है
जुगनुओं की तरह
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
बैठे हैं हम आज अकेले
लबों पर मुस्कान
वो लम्हा
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अन्तर में मीरा
बसी
अन्तर में मीरा बसी, बैठा
द्वार कबीर
अधरों पर ठिठकी रही, रसवंती सी पीर
शरद जुन्हाई ने लिखे, कुछ मधु-पूरित छ्न्द
जब मन से मन का हुआ, कोमल सा अनुबन्ध
कहीं सुकूँ के पल नहीं, जीवन बाधा दौड़
अफरा-तफरी है मची, द्वेष, ईर्ष्या, होड़
फागुन तुम मत आइयो, यह बिरहिन का गाँव
हर मौसम पतझर यहाँ, जलती पीपल छाँव
मौन हुई अमराइयाँ, भूली कोयल गीत
फागुन, फागुन ना लगे, दूर बसे मनमीत
सपने बंजारे हुये, भटकें देश-विदेश
खुशियों ने धारण किया, सन्यासी का वेश
नहीं कोई उम्मीद अब, फागुन हो या शीत
जमी हृदय पर बर्फ सी, दूर गये मन मीत
नयन-नयन की बतकही, सपनों वाली रात
सपने में मिल जाय तो, मिल जाये सौगात
छितरी-छितरी बादरी, ज्यों तीतर के पंख
मन रेती के ढेर में, ढूँढ़े सीपी,शंख
भ्रमर भ्रमित अति देख कर, कागज के ये फूल
रंग गन्ध सब एक से, कैसे ना हो भूल
१ अप्रैल
२०१८
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