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अनुभूति में डॉ. मधु प्रधान की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
इतनी पीड़ा
गीत गाने के लिये भी
चंदन हम तो बन जाएँगे
लौटा दो मेरे गाँव गली

गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में
प्रीत की पाँखुरी
प्यासी हिरनी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुमन जो मन में बसाए
सुलग रही फूलों की घाटी

अंजुमन में-
चुपके चुपके
जिंदगी मीठी गजल है
जुगनुओं की तरह
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
बैठे हैं हम आज अकेले
लबों पर मुस्कान

वो लम्हा

  गीत गाने के लिये

गीत गाने के लिये भी
गीत सा मन चाहिये

पास में
कुछ भी न हो
मृदु सुधि किसी की पास हो
साथ में कुछ भी न हो बस
मधुर प्रिय का साथ हो
देख पाऊँ मैं स्वयं को
एक दर्पण चाहिये

चाह तो
मन में बहुत
यदि मिल सके इतना मिले
राह की दुश्वारियों में भी
सुमन सा यह मन खिले
आस्था विष्वास दृढ़ता
' समर्पण चाहिये

१ सितंबर २०१६
 

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