अनुभूति में
डॉ.
मधु प्रधान की रचनाएँ-
नये गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में
प्यासी हिरनी
सुमन जो मन
में बसाए
गीतों में-
प्रीत की पाँखुरी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुलग रही फूलों की घाटी
अंजुमन में-
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
लबों पर मुस्कान
|
|
नया शहर है
नया शहर है पथ अनजाने, डर सा लगता है
सपनों का क्या होगा जाने डर सा लगता है
कदम कदम पर रोक रही है नीर भरी आँखें
अब बिछुड़े कब मिलेंगे जाने डर सा लगता है
आवारा सी गन्ध फिर रही इधर उधर भटकी
नकली फूलों की दूकानें डर सा लगता है
कंकड़-पत्थर के जंगल में पंख कटा पंछी
ढूंढे खोये हुये ठिकाने डर सा लगता है
जाने क्यों है खौफ जदा ये नई नई कलियाँ
सहमी-सहमी सी मुस्काने डर सा लगता है
परछाईं के पीछे भागे दिन तो बीत गया
अब तो साँझ दे रही तानें डर सा लगता है
२२ नवंबर २०१० |