अनुभूति में
डॉ.
मधु प्रधान की रचनाएँ-
नये गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में
प्यासी हिरनी
सुमन जो मन
में बसाए
गीतों में-
प्रीत की पाँखुरी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुलग रही फूलों की घाटी
अंजुमन में-
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
लबों पर मुस्कान
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तुम क्या जानो
तुम क्या जानो क्या होता है
जब स्वप्निल अनुबन्ध टूटते
मिले मिलाये तार रुठते
धवल चाँदनी के छौनों को
अंधकार के दूत लूटते
सूनी चौखट पर जब कोई
खुद पर ही हँसता रोता है।
रिमझिम के मृदु गीत सुनाकर
बेसुध सोई पीर जगा कर
दस्तक देती है पुरवाई
हरियाली चुनर लहरा कर
पर सुधियाँ पग रखते डरतीं
इतना मन भीगा होता है
कहने को सब कहते रहते
अनजाने ही दे जाते हैं
कुछ कड़वी, कुछ मीठी बातें
कोमल मन को गहरी घातें
किन्तु मौन अधरों की भाषा
समझे जो, विरला होता है।
९ दिसंबर २०१३
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