अनुभूति में
डॉ.
मधु प्रधान की रचनाएँ-
नये गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में
प्यासी हिरनी
सुमन जो मन
में बसाए
गीतों में-
प्रीत की पाँखुरी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुलग रही फूलों की घाटी
अंजुमन में-
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
लबों पर मुस्कान
|
|
सुमन जो मन में
बसाए सुमन जो मन में
बसाये
भाव भीनी गंध हूँ मैं।
वर्जनायें थीं डगर की
किन्तु कुछ मधुपल चुराये
कल्पनाओंके क्षितिज पर
र्स्वण शतदल से सजाये
अंजली अनुराग की
झरता हुआ मकरंद हूँ मै
मधुर अंकुर कामना का
बीज बन अन्तरनिहित है
काव्य के अनहद स्वरों में
गन्ध मृग सा जो भ्रमित है
गीत की अर्न्तकथा का
वह प्रथम अनुबन्ध हूँ मैं।
मोहिनी की मदिर छवि में
उमड़ते मृदु भाव भर कर
चितेरे की तूलिका से
झरे रस के बिन्दु झर झर
छलछलाते नयन से
छलका हुआ आनन्द हूँ मैं।
९ दिसंबर २०१३
|