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अनुभूति में डॉ. मधु प्रधान की रचनाएँ-

नये गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में

प्यासी हिरनी
सुमन जो मन में बसाए

गीतों में-
प्रीत की पाँखुरी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुलग रही फूलों की घाटी

अंजुमन में-
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
लबों पर मुस्कान

  रूठकर मत दूर जाना

रूठ कर
मत दूर जाना।

माँग भर कर प्राण! तुमने
प्राण वश में कर लिये हैं
था अँधेरी
रात सा मन
जले फिर सौ-सौ दिये हैं
आ गया फिर गुनगुनाना


आस्था के इस सफर में
शूल भी हैं, फूल भी हैं
हैं बहुत
तूफान लेकिन
शान्त सरिता कूल भी हैं
सीख लें सुख-दुख निभाना


पतझरों के बीच भी
मधुमास का आभास होना।
हो रहा
अनुभव, तुम्हारा
बहुत मन के पास होना।
पर कठिन तुमको बताना

१३ दिसंबर २०१०

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