अनुभूति में
डॉ.
मधु प्रधान की रचनाएँ-
नये गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में
प्यासी हिरनी
सुमन जो मन
में बसाए
गीतों में-
प्रीत की पाँखुरी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुलग रही फूलों की घाटी
अंजुमन में-
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
लबों पर मुस्कान
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आओ बैठें नदी
किनारे आओ बैठें नदी
किनारे
गीत पुराने फिर दोहराएँ
कैसे किरनों ने पर खोले
कैसे सूरज तपा गगन में
कैसे बादल ने छाया दी
कैसे सपने जगे नयन में
सुधियाँ उन स्वर्णिम दिवसों की
मन के सोये तार जगाएँ
जल में झुके सूर्य की आभा
और सलोने चाँद का खिलना
सिन्दूरी बादल के रथ का
लहरों पर इठला कर चलना
बिम्ब पकड़ने दौड़ें लहरें
खुद में उलझ उलझ रह जाएँ
श्वेत पांखियों की कतार ने
नभ में वन्दनवार सजाये
प्रकृति नटी के इन्द्रजाल में
ये मन ठगा-ठगा रह जाये
धीरे-धीरे संध्या उतरी
लेकर अनगिन परी कथाएँ
९ दिसंबर २०१३
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