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अनुभूति में डॉ. मधु प्रधान की रचनाएँ-

नये गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में

प्यासी हिरनी
सुमन जो मन में बसाए

गीतों में-
प्रीत की पाँखुरी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुलग रही फूलों की घाटी

अंजुमन में-
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
लबों पर मुस्कान

  लबों पर मुस्कान

लबों पर मुस्कान लेकिन दर्द आँखों में लिये
खुद को भुला कर आदमी बोलो भला कैसे जिये

जिससे थी उम्मीद वो ही बेवफा हमको मिला
सिर्फ पत्थर था वो बुत सज्दे जहाँ हमने किये


बात छोटी सी थी लेकिन घाव गहरा कर गई
क्या न जाने सोच कर हम रहे होठों को सिये

सोच कर अंजाम अपना आइना पथरा गया
दिखे जो हमदर्द अपने हाथ में पत्थर लिये

आँधियों से मेहरबानी की उम्मीदें तो नहीं
मुश्किलों के बीच भी जलते रहे हैं कुछ दिये

२२ नवंबर २०१०

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