अनुभूति में
डॉ.
मधु प्रधान की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इतनी पीड़ा
गीत गाने के लिये भी
चंदन हम तो बन जाएँगे
लौटा दो मेरे गाँव गली
गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में
प्रीत की पाँखुरी
प्यासी हिरनी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुमन जो मन
में बसाए
सुलग रही फूलों की घाटी
अंजुमन में-
चुपके चुपके
जिंदगी मीठी गजल है
जुगनुओं की तरह
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
बैठे हैं हम आज अकेले
लबों पर मुस्कान
वो लम्हा
|
|
लौटा दो मेरे
गाँव गली
लौटा दो मेरे गाँव गली
भोले शैशव का वो दुलार
माँ के ममतामय मधुर बोल
फिर से बचपन दे दो उदार
दे सको अगर हे! सृजनहार!
उन्मुक्त हँसी वह लुका छिपी
फिर झूलों पर पैंगे भरना
गुड्डे गुड़िया का ब्याह कभी
फिर मिलने का वादा करना
लौटा दो पीपल की छाया
खिल खिल हँसता वो हरसिंगार
रुक सके समय चक्र कभी
इक पल के लिये मैं देखूँ तो
मुड़ गया किधर दो राहे से
जीवन इन अंधी गलियों का
है जीवन का बस नाम यहाँ
पल पल बिखरें है अंगार
पाबन्दी है सूरज पर भी
है मना हवा आना घर में
वर्षा की बूँदें बन्दी हैं
जाने किस दानव के कर में
हर ओर जंग है नफरत है
बारुद धुएँ के है गुबार
१ सितंबर २०१६ |