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अनुभूति में डॉ. मधु प्रधान की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
इतनी पीड़ा
गीत गाने के लिये भी
चंदन हम तो बन जाएँगे
लौटा दो मेरे गाँव गली

गीतों में-
आओ बैठें नदी किनारे
तुम क्या जानो
पीपल की छाँह में
प्रीत की पाँखुरी
प्यासी हिरनी
मेरी है यह भूल अगर
रूठकर मत दूर जाना
सुमन जो मन में बसाए
सुलग रही फूलों की घाटी

अंजुमन में-
चुपके चुपके
जिंदगी मीठी गजल है
जुगनुओं की तरह
जहाँ तक नज़र
जेठ की दोपहर
नया शहर है
बैठे हैं हम आज अकेले
लबों पर मुस्कान

वो लम्हा

 

ज़िन्दगी मीठी गज़ल है

मानते हैं ज़िन्दगी मीठी गज़ल है
पर घिरी तूफान से यह आजकल है

उसकी यादों को बना कर हम सफर चल
यूँ किसी को भूल जाना क्या सरल है?

फेक पत्थर दूसरों पर यों हँसो मत
याद रख तेरा भी शीशे का महल है

गर्दिशों में भी चमकते जो रहे ‘मधु‘
वो सितारे आसमाँ पर आजकल हैं

मंज़िलों ने भी कदम चूमें हैं उसके
आगे बढ्ने की हुई जिससे पहल है।

१९ मई २०१४

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