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आँख का काजल
आँख का काजल, चुरा लेती है दुनिया
काम ऐसे भी, बना लेती है दुनिया
हश्र बरपा, करके रख देती है यों भी
राई का पर्वत बना लेती है दुनिया
बेठिकाना उसके दिल की वुस्अतें हैं
सब को अपने में समा लेती है दुनिया
एक की बातें बता कर दूसरों को
कौन-सा सुख है जो पा लेती है दुनिया
जानती है सच मगर कहती नहीं कुछ
आदमी का यों मज़ा लेती है दुनिया
१ जुलाई २०१७
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