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अब इस तरह से मुझको
अब इस तरह तो मुझ को, सताया न कीजिए।
आके क़रीब दूरी, बढ़ाया न कीजिए।
करने हैं जो भी शिकवे–गिले कीजिए मगर,
गुस्से में प्यार को तो, छुपाया न कीजिए।
क्यों अपनी दास्ताँ से, मुझे ग़मज़दा किया,
हँसना मैं चाहता हूँ, रुलाया न कीजिए।
मैं ग़म ख़रीद सकता हूँ, सब आपके मगर,
क़ीमत मेरी वफ़ा की, लगाया न कीजिए।
जब टूटते हैं ख्वाब तो, होता है दर्द भी,
ऑखों में आप ख्वाब, सजाया न कीजिए।
अपना अगर बनाना है 'अनजान' ग़ैर को,
नफ़रत की बात होठों पे लाया न कीजिए।
१० जून २०१३
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