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अनुभूति में अरुण तिवारी 'अनजान'  की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अब इस तरह से मुझको
क्यों लोग मुहब्बत से
कुछ तो करो कमाल
नयन टेसू बहाते हैं
पहले से नहीं मिलते

अंजुमन में-
अगरचे मुहब्बत जो धोखा रही है
आग
कहने पे चलोगे
गम ने दिखाए ऐसे रस्ते
दिल में गुबार
बड़ी मुश्किल-सी कोई बात
ये दुनिया

 

पहले से नहीं मिलते

पहले से नहीं मिलते अब लोग ज़माने में।
जोश उन में नहीं वैसा, अब मिलने–मिलाने में।

हम ने तो सदा यारों, चाहा है भला उस का,
छोड़ी न क़सर उस ने, हम को ही मिटाने में।

हीरों को यहाँ कोई, पूछेगा भला कैसे?
खोटे ही लगे चलने, जब सिक्के ज़माने मेँ।

कुछ खोट हमीं में है, इल्ज़ाम उसे क्यों दें,
पीछे ही रहे शायद, हम प्यार निभाने में।

इंसान यहाँ भूखे, दम तोड़ते हैं लेकिन,
हम हैं कि लगे मंदिर–मस्जिद को बचाने में।

'अनजान' नहीं आसाँ, उस दिल को समझ पाना,
माहिर है बड़ा कोई, हर राज़ छिपाने में।

१० जून २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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