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पहले से नहीं मिलते
पहले से नहीं मिलते अब लोग ज़माने में।
जोश उन में नहीं वैसा, अब मिलने–मिलाने में।
हम ने तो सदा यारों, चाहा है भला उस का,
छोड़ी न क़सर उस ने, हम को ही मिटाने में।
हीरों को यहाँ कोई, पूछेगा भला कैसे?
खोटे ही लगे चलने, जब सिक्के ज़माने मेँ।
कुछ खोट हमीं में है, इल्ज़ाम उसे क्यों दें,
पीछे ही रहे शायद, हम प्यार निभाने में।
इंसान यहाँ भूखे, दम तोड़ते हैं लेकिन,
हम हैं कि लगे मंदिर–मस्जिद को बचाने में।
'अनजान' नहीं आसाँ, उस दिल को समझ पाना,
माहिर है बड़ा कोई, हर राज़ छिपाने में।
१० जून २०१३
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