आग
आग अपनों ने ही लगाई है
बात ग़ैरों पे चली आई है
पीठ पीछे से रहनुमाई है
तौबा-तौबा ये पारसाई है
तीरगी में भी राह मिलती है
गर तेरी सोच में बीनाई है
किसी ज़ालिम से भला डरना क्या
जब कि चारों तरफ़ खुदाई है
नेकियाँ कैसे भुला दूँ उसकी
ज़िंदगी जिससे मुस्कुराई है
उसे खुदगर्ज़ समझ लूँ कैसे
जो तसव्वुर में चली आई है
24 दिसंबर 2007
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