|
अशोक |
|
तरु अशोक का जिसमें लगते
लाल सुनहरी फूल
वहाँ शोक का काम न कोई
हर सुख का है मूल
ताँबे जैसी नई कोंपलें
जीवन में उल्लास भरें
आम सरीखी हरी पत्तियाँ
तन मन का हर ताप हरें
जिसके नीचे बैठ जानकी
दुख जाती थी भूल
हर घर के दरवाजे पर कुछ
नव अशोक के विटप बड़े
आसमान छूने की जिद है
धरती पर हैं मगर खड़े
द्वारपाल बन रोक रहे हैं
घर में घुसे न धूल
जाने कितने औषधीय गुण
रखे हुए अपने अन्दर
हर मौसम में हरियाली की
रहता है ओढ़े चूनर
विटप अशोका होता अदभुत
कर लो सभी कबूल
- बसंत कुमार शर्मा |
|
इस माह
अशोक विशेषांक में
गीतों में-
छंदमुक्त में-
छंदों में-
अंजुमन में-
|
|