झरती हुई नीम
नीम नीम धरती है नीम नीम छत
फूल फूल बिखरी है बाँटती रजत
तितली सी उड़ती है दूर तक हवाओं में
चैत की छबीली है छिटकती छटाओं में
उत्सव के रेले हैं
पात पात मेले हैं
हुरियारी बगिया ने
खूब रंग खेले हैं
लेकिन यह श्वेत वर्ण फूल फूल बिखरी है
नीम नीम झरती है नीम नीम ठहरी है
टाँकती दिशाओं में
रेशमी नखत
जाने क्या कहती है सड़कों के कानों में
सर सर स्वर भरती है फागुन के गानों में
खुशियों में खोना है
नीम नीम होना है
दूर तलक इसी तरह
जाना है होना है
आकर के करतल पर पल भर को ठहरी है
अँगुली के पोरों पर धुन कोई लहरी है
थिरकेगी तारों पर मंद्र
कोई गत
१५ नवंबर २०१५
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