बरसाती दोहे
भादों आया देख के हुई सुहानी शाम
मौसम भी लिखने लगा पत्तों पे पैगाम।
चादर ओढ़ी सुरमई छोड़ सिंदूरी गाम
बात-बात में बढ़ गई बारिश से पहचान।
गलियारे पानी भरे आँगन भरे फुहार
सावन बरसा झूम के भादों बही बयार।
छम-छम बाजे पायली रुके नहीं बरसात
हरी मलमली चूनरी तितली चूड़ा हाथ।
बादल में मादल बजे नभ गूँजे संतूर
मन में बिच्छू-सा चुभे घर है कितनी दूर।
कच्ची पक्की मेड़ पर एक छाते का साथ
हवा मनचली खींचती पकड़-पकड़ कर हाथ।
बरसी बरखा झूम के सबके मिटे मलाल
खेतों में हलचल बढ़ी खाली हैं चौपाल।
गड़-गड़ बाजी बादरी भिगो गई दालान
खट्ठे मन मीठे हुए क्या जामुन क्या आम।
बादल की अठखेलियाँ बारिश का उत्पात
ऐसा दोनों का मिलन सूखे को दी मात।
ताल–तलैया¸ बाग़–वन, झरनों की भरमार
मन खिड़की से झाँकता हरा भरा व्यापार।
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