दुनिया के
मेले में एक दीप मेरा
ढेर से धुँधलके में ढूँढता सवेरा
वंदन अभिनंदन में
खोया उजियारा
उत्सव के मंडप में
आभिजात्य सारा
भरा रहा शहर रौशनी से हमारा
मन में पर छिपा रहा
जूना अँधियारा
जिसने
अँधियारे का साफ़ किया डेरा
जिसने उजियारे का रंग वहाँ फेरा
एक दीप मेरा
सड़कों पर
भीड़ बहुत सूना गलियारा
अँजुरी भर पंचामृत
बाकी जल खारा
सप्त सुर तीन ग्राम अपना इकतारा
छोटे से मंदिर का
ज्योतित चौबारा
जिसने
कल्याण तीव्र मध्यम में टेरा
जिससे इन साँसों पर चैन का बसेरा
एक दीप मेरा
—पूर्णिमा वर्मन
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