मेरे गाँव में
मेरे गाँव में कोई तो होगा
कंप्यूटर पर बैठा मेरी राह देखता
मेरी पाती पढ़ने वाला
मेरी भाषा मेरा दर्द समझने वाला
मेरी लिपि को मेरी तरहा रचने वाला
मेरी मिट्टी की खुशबू में रचा बसा-सा
मेरी सोच समझने वाला
या कोई मेरी ही तरहा
घर से बिछुड़ा
भारत की मिट्टी का पुतला
परदेसी-सा दिखने वाला
एकाकी कमरे में बैठा
खोज मोटरों में
उलझा-सा
टंकित करता होगा —
तरह-तरह से नाम पते
भाषा और रुचियाँ
ढूंढ रहा होगा
अपनों को मेरी तरहा
जीवन की आपाधापी से रमा हुआ भी
पूरा करने को कोई
बचपन का सपना।
अपनों की आशा का सपना
देश और भाषा का सपना।
मेरे गाँव में
बड़े-बड़े अपने सपने थे
दोस्त गुरु परिचित कितने थे
बड़े घने बरगद के नीचे
बड़ी-बड़ी ऊँची बातें थीं
कहाँ गए सब?
कोई नज़र नहीं आता है
यह सब कैसा सन्नाटा है?
तोड़ो यह सन्नाटा तोड़ो
नए सिरे से अब कुछ जोड़ो
दूर वहीं से हाथ हिलाओ
मेरी अनुगूँजों में आओ
आओ सफ़र लगे ना तन्हा
बोलो साथ-साथ तुम हो ना
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