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अनुभूति में पूर्णिमा वर्मन की रचनाएँ -

नए गीतों में-
कोरे खाली नुक्कड़
राम भरोसे
शहरों की मारामारी में
सड़क

गीतों में-
आवारा दिन
कोयलिया बोली
खोया खोया मन
चोंच में आकाश
ताड़ों की क्या बात
तितलियों के दल
माया में मन
मेरा पता
रखे वैशाख ने पैर
हरी घाटी
हवा में घुल रहा विश्वास

अंजुमन में-
पर्वत के देवदार

हाइकु में-
होली हाइकु
कुछ और होली हाइकु

दोहों में-
बरसाती दोहे
नए साल के दोहे
कहें तितलियाँ

'वक्त के साथ' संग्रह से
आधी रात
इस मोड़ पर
कितना अच्छा लगता है
नाम लो मेरा
बरगद
बारिश बारिश नभ
रंग
रेत सागर
रेलगाड़ी में
वक्त के साथ
सड़क दर सड़क
स्वर्ण हिरण

क्षणिकाओं में-
उदासी, डर, समंदर, चुप, रस्ता, आँसू

कविताओं में-
आज दिन
गाँव में अलाव
एक और साल
मेरे गाँव में
मौसम की आहट

संकलन में-
वसंती हवा - एक गीत और कहो
धूप के पाँव - ग्रीष्म के स्तूप
वर्षा मंगल में - बेढंगा मौसम
ज्योति पर्व -      मंदिर दियना बार
               आओ मिल कर दीप जलाएँ
                दिया
गाँव में अलाव-     सर्दी में नया साल
शुभकामना-        रंगों की
छोटी कविता- जेठ में
क्षणिका - धूप कनी
धन्यवाद
नया साल-नया साल मंगलमय हो
       -नए साल का नव दुलार
जग का मेला-जग का मेला
होली है-होली के दोहे
ममतामयी-नमन में मन
दिये जलाओ-एक दीप मेरा
   

 

मेरे गाँव में

मेरे गाँव में कोई तो होगा
कंप्यूटर पर बैठा मेरी राह देखता
मेरी पाती पढ़ने वाला
मेरी भाषा मेरा दर्द समझने वाला
मेरी लिपि को मेरी तरहा रचने वाला
मेरी मिट्टी की खुशबू में रचा बसा-सा
मेरी सोच समझने वाला

या कोई मेरी ही तरहा
घर से बिछुड़ा
भारत की मिट्टी का पुतला
परदेसी-सा दिखने वाला
एकाकी कमरे में बैठा

खोज मोटरों में
उलझा-सा
टंकित करता होगा —
तरह-तरह से नाम पते
भाषा और रुचियाँ
ढूंढ रहा होगा
अपनों को मेरी तरहा
जीवन की आपाधापी से रमा हुआ भी
पूरा करने को कोई
बचपन का सपना।

अपनों की आशा का सपना
देश और भाषा का सपना।

मेरे गाँव में
बड़े-बड़े अपने सपने थे
दोस्त गुरु परिचित कितने थे
बड़े घने बरगद के नीचे
बड़ी-बड़ी ऊँची बातें थीं
कहाँ गए सब?

कोई नज़र नहीं आता है
यह सब कैसा सन्नाटा है?

तोड़ो यह सन्नाटा तोड़ो
नए सिरे से अब कुछ जोड़ो
दूर वहीं से हाथ हिलाओ
मेरी अनुगूँजों में आओ
आओ सफ़र लगे ना तन्हा
बोलो साथ-साथ तुम हो ना

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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