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गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं
को संकलन |
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गाँव में अलाव संकलन |
सर्दी
में नया साल |
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गयी शाम का
रतजगा सरदी ताबेदार
नये साल की शान में एक और त्यौहार
तितली जैसे
उड़ रहे सजे रिबन रंगीन
गुब्बारों की ओट में हर बंदा संगीन
खड़ी दूब
मोती लिये धूप दुशाला गर्म
सुबह अँगीठी सी लगे नये साल के संग
कोहरा पहने
ऋतु चढ़ी मौसम का दरबार
नया साल कहने लगा आदाब'र्ज सरकार
पिछला संवत
चल दिया अपनी लाठी टेक
नया बर्फ सा कुरकुरा, मूँगफली-सा नेक
गमले भर
गुलदावदी क्यारी भरे गुलाब
आसमान कोहरा भरा ठंड उमगता माघ
दिशा दिशा
में दीप रख द्वारे बंदनवार
नया साल खुशियाँ भरे सर्दी हो गुलनार
- पूर्णिमा
वर्मन |
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सर्द मौसम
दिन अंधेरा, रात काली
सर्द मौसम है
दहशतों की कैद में
लेकिन नहीं हम हैं!
नहीं गौरैया
यहाँ पाँखें खुजाती है
घोंसले में छिपी चिड़िया
थरथराती है
है यहाँ केवल अमावस
नहीं, पूनम है!
गूँजती शहनाइयों में
दब गईं चीखें
दिन नहीं बदले
बदलती रहीं तारीखें
हिल रही परछाइयों-सा
हिल रहा भ्रम है!
वनों को, वनपाखियों का
घर न होना है
मछलियों को ताल पर
निर्भर न होना है
दर्ज यह इतिहास में
हो रहा हरदम है!
नचिकेता
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