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अनुभूति में शिवबहादुर सिंह भदौरिया की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
एक सवाल कि जीवन क्या है
कहा कि सबकी पीड़ा गाओ
कुहासे की शिलाएँ
जिंदगी कठिन तेवर तेरे
दुर्दिन महराज
पत्थर समय
पाँवों में वृन्दावन बाँधे
बैठ लें कुछ देर आओ
यही सिलसिला है
वटवृक्ष पारदर्शी

गीतों में-
इंद्रधनुष यादों ने ताने
जीकर देख लिया
टेढ़ी चाल जमाने की
नदी का बहना मुझमें हो
पुरवा जो डोल गई

मुक्तक में-
सब कुछ वैसे ही

 

यही सिलसिला है

नजदीकी रिश्ता है
लेकिन
बहुत फासला है !

‘कुशल-क्षेम’ पूछा था उसने
कृत्रिम-सा हँसकर
मैं भी चलता बना, दबे मन
‘अच्छा हूँ’ कहकर

कभी-कभी का नहीं
रोज का
यही सिलसिला है।

अपने घर में डसे सर्प-सा
निपट परायापन
बातों के लुव्वोलुबाव में
गुणा-भाग, ऋण-धन

पुत्र गरज कर कहे
पिता से
मुझे क्या मिला है ?

तहजीबी खाली जेबों में
भरी मुरादें हैं
चादर देख पाँव फैलाना
पिछली यादें हैं

उधर
जरूरत की तफसीलें
इधर मुँह सिला है।

१९ अगस्त २०१३

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